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ग़ज़ल
अब शुआ-ए-हुस्न-ए-पुर-अनवार है नज़्ज़ारा सोज़
तेरी इस बे-पर्दगी ने ख़ुद ही पर्दा कर दिया
हामिदुल्लाह अफ़सर
ग़ज़ल
शुआ'-ए-बर्क़-ओ-शरर चुन के हम ने रक्खी है
निहाल-ए-ख़ुश्क प तामीर-ए-आशियाँ के लिए