आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "shubah"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "shubah"
ग़ज़ल
ये हुस्न ओ इश्क़ ही का काम है शुबह करें किस पर
मिज़ाज उन का नहीं मिलता हमारा दिल नहीं मिलता
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ख़ून-ए-नाहक़ का किसी के शुबह और तुम पर मगर
सीना-ए-'जौहर' में देखो तो ये किस का तीर है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
लगा लेंगे उसे अहल-ए-वफ़ा बे-शुबह आँखों से
अगर पा-ए-अदू पर उस ने ख़ाक-ए-आस्ताँ रख दी
साइल देहलवी
ग़ज़ल
हम आप से जो कुछ कहते हैं वो बिल्कुल झूट ग़लत इक दम
और आप जो कुछ फ़रमाते हैं बे-शुबह बजा फ़रमाते हैं
अंजुम मानपुरी
ग़ज़ल
नक़्द-ए-दिल-ए-ख़ालिस कूँ मिरी क़ल्ब तूँ मत जान
है तुझ कूँ अगर शुबह तो कस देख तपा देख
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
मो'जिज़ा हज़रत-ए-ईसा का था बे-शुबह दुरुस्त
कि मैं दुनिया से गया उठ जो कहा क़ुम मुझ को
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
शुबह अगर तुम्हें आदम की दास्ताँ में नहीं
तो फिर गुनाह कोई सज्दा-ए-बुताँ में नहीं