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ग़ज़ल
साअद-ए-सीमीं दोनों उस के हाथ में ला कर छोड़ दिए
भूले उस के क़ौल-ओ-क़सम पर हाए ख़याल-ए-ख़ाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
और तो मुझ को मिला क्या मिरी मेहनत का सिला
चंद सिक्के हैं मिरे हाथ में छालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यूँ हैरान 'क़तील'
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बस-कि रोका मैं ने और सीने में उभरीं पै-ब-पै
मेरी आहें बख़िया-ए-चाक-ए-गरेबाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइ'ज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-साधे भोले भाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए
सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तब कहीं कुछ पता चला सिद्क़-ओ-ख़ुलूस-ए-हुस्न का
जब वो निगाहें इश्क़ से बातें बना के रह गईं