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ग़ज़ल
कोई है जो यहाँ इस कर्बला में जान पर खेले
कोई है जो यहाँ अब सूरत-ए-शाह-ए-नजफ़ निकले
अंजुम रूमानी
ग़ज़ल
अब तो जोश-ए-आरज़ू 'तस्लीम' कहता है यही
रौज़ा-ए-शाह-ए-नजफ़-अल्लाह दिखलाए मुझे
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
महव-ए-इश्क़-ए-शह-ए-ख़ादिम हूँ मैं 'आसिम' यकसर
हुस्न पर जिस के हैं ये मेरे दिल-ओ-जाँ नाज़ाँ
शाह आसिम
ग़ज़ल
मस्त-ए-इश्क़-ए-शह-ए-ख़ादिम हूँ मैं 'आसिम' यकसर
जिस ने बख़्शा है मुझे बादा-ए-इरफ़ाँ का अयाग़
शाह आसिम
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़ फैल फैल के रुख़्सार को न ढाँक
कर नीम-रोज़ की न शह-ए-मुल्क-ए-शाम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'ग़ुलाम'-ए-शाह-ए-फ़ाज़िल का कहे दिल सूँ सुनो यारो
देखा मैं शह मुहीउद्दीं मुझे फिर क्या दिखाना है
ग़ुलाम क़दीर शाह
ग़ज़ल
हम फ़क़ीराना ग़ज़ल कहते हैं ऐ शाह-ए-जहाँ
ख़ैर हो ख़ैर हो मसरूफ़-ए-दुआ होते हैं