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ग़ज़ल
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
रखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मर्द-ए-दरवेश का सरमाया है आज़ादी ओ मर्ग
है किसी और की ख़ातिर ये निसाब-ए-ज़र-ओ-सीम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये कब तक सीम-ओ-ज़र के जंगलों में मश्क़-ए-ख़ूँ-ख़्वारी
ये इंसानों की बस्ती है अब इंसानों में आ जाओ
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
तवंगर था बनी थी जब तक उस महबूब-ए-आलम से
मैं मुफ़्लिस हो गया जिस रोज़ से वो सीम-तन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी
मज़ा दे जाएगी दिल से अगर ऐ सीम-बर होगी
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
फ़रहान सालिम
ग़ज़ल
रश्क-ए-ख़ुर्शीद जबीं अब्र-ए-सियह सी पट्टी
लहर चोटी की ग़ज़ब ज़ुल्फ़-ए-परेशान परी