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ग़ज़ल
मिरे इस अव्वलीं अश्क-ए-मोहब्बत पर नज़र कर
ये मोती सीप में फिर उम्र-भर आता नहीं है
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
हमारे हिस्से में आई है रेत साहिल की
किसी ने छीन ली वो सीप जिस में गौहर था