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ग़ज़ल
सिज्न ओ जन्नत दोनों ऐ काफ़िर हैं इस दुनिया के नाम
वो अज़ल से बख़्त-ए-मोमिन ये तिरी तक़दीर है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
कभी तुम सर्द करते हो दिलों की आग गर्मी सीं
कभी तुम सर्द-मेहरी सीं झटक कर बाव करते हो
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
अगर अँखियों सीं अँखियों को मिलाओगे तो क्या होगा
नज़र कर लुत्फ़ की हम कूँ जलाओगे तो क्या होगा