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ग़ज़ल
गुफ़्तुगू तू ने सिखाई है कि मैं गूँगा था
अब मैं बोलूँगा तो बातों में असर भी देना
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
कहाँ से तू ने ऐ 'इक़बाल' सीखी है ये दरवेशी
कि चर्चा पादशाहों में है तेरी बे-नियाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नई ये वज़्अ शरमाने की सीखी आज है तुम ने
हमारे पास साहब वर्ना यूँ सौ बार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
अब क्या जो फ़ुग़ाँ मेरी पहुँची है सितारों तक
तू ने ही सिखाई थी मुझ को ये ग़ज़ल-ख़्वानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
झूटे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल
शक्लें देख के सौदे करना काम है इन बंजारों का
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
एक तहज़ीब है दोस्ती की एक मेयार है दुश्मनी का
दोस्तों ने मुरव्वत न सीखी दुश्मनों को अदावत तो आए
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हम तेरी सिखाई मंतिक़ से अपने को तो समझा लेते हैं
इक ख़ार खटकता रहता है सीने में जो पिन्हाँ होता है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शमीम करहानी
ग़ज़ल
अदा ये किस कटे पत्ते से तू ने सीखी है
सितम हवा का हो और शाख़ से शिकायत कर