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ग़ज़ल
तुम थे लेकिन दो हिस्सों में बटे हुए थे तुम
आँख खुली तो बिस्तर की हर सिलवट में था ख़ौफ़
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
तुम्हारे जिस्म ने पहलू-ब-पहलू जिस को लिक्खा था
वो सिलवट ज्यूँ की त्यूँ अब भी मिरे बिस्तर पे रक्खी है
ज़िया ज़मीर
ग़ज़ल
पसीना माथे से बह रहा है न कोई सिलवट लिबास पर है
अजब थकन है जो काम करने से क़ब्ल तारी हवास पर है
पारस मज़ारी
ग़ज़ल
नज़र मेरी तिरे माथे की सिलवट पे ही रहती है
ख़ुशी मेरी इसी सिलवट पे आ कर टूट जाती है
हिमांशु पांडेय
ग़ज़ल
जिन के बिस्तर से नहीं जाती कोई सिलवट कभी
उन की आँखों में वफ़ा के ख़्वाब जारी कीजिए
नबील अहमद नबील
ग़ज़ल
क़बा पहनते जो बरहम हुआ वो चुस्त-क़बा
दिया है चीन-ए-जबीं ने भी साथ सिलवट का
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
जो हर दम ज़ेहन में चुभती है वो सिलवट नहीं जाती
कि बिस्तर पर भी मेरे दिल की घबराहट नहीं जाती