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ग़ज़ल
खुल जा सिम-सिम खुल जा सिम-सिम कब तलक चिल्लाएगा
तू अली-बाबा नहीं है तोड़ दे ताले न देख
तनवीर गौहर
ग़ज़ल
मर्द-ए-दरवेश का सरमाया है आज़ादी ओ मर्ग
है किसी और की ख़ातिर ये निसाब-ए-ज़र-ओ-सीम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सुकून-ए-दिल की तलब में तड़प रहा हूँ मगर
असीर लज़्ज़त-ए-दुनिया-ए-सीम-ओ-ज़र में हूँ