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ग़ज़ल
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
उस की हथेली के दामन में सारे मौसम सिमटे थे
उस के हाथ में जागी मैं और उस के हाथ से उजली मैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
अपने अपने दिल के अंदर सिमटे हुए हैं हम दोनों
गुम-सुम गुम-सुम मैं भी बहुत हूँ खोया खोया तू भी है
फ़राग़ रोहवी
ग़ज़ल
आरिज़ पे सिमटे ख़ुद-ब-ख़ुद ज़ुल्फ़ों के घूँगर वाले बाल
है नाफ़ा-ए-मुश्क-ए-ख़ुतन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़