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ग़ज़ल
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद सिर्र-ए-अयाँ है तू कि मैं
वो जो नज़र से है निहाँ उस का जहाँ है तू कि मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
खोल के क्या बयाँ करूँ सिर्र-ए-मक़ाम-ए-मर्ग ओ इश्क़
इश्क़ है मर्ग-ए-बा-शरफ़ मर्ग हयात-ए-बे-शरफ़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़र्रा ज़र्रा है यहाँ इक कतबा-ए-सिर्र-ए-अलस्त
आप ही वाक़िफ़ नहीं हैं रस्म-ए-ख़त्त-ए-राज़ से
ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
फ़ना कहते हैं किस को मौत से पहले ही मर जाना
बक़ा है नाम किस का अपनी हस्ती से गुज़र जाना
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो
जीभ के दो सिर के दो रुख़्सार के दो सब के दो
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
फ़रिश्ते भी न समझे आज तक मेरी हक़ीक़त को
कि ताज-ए-अशरफ़-ए-मख़्लूक़ की ज़ीनत है सर मेरा