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ग़ज़ल
जो हम से ज़िंदगी हर दम ख़फ़ा मा'लूम होती है
हमें तो साफ़ अपनी ही ख़ता मा'लूम होती है
नसीम सय्यद
ग़ज़ल
कहूँ क्या दिल उड़ाने का तिरा कुछ ढब निराला था
वगर्ना हर तरह से अब तलक तो मैं सँभाला था
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं
ज़रा सी देर को दुनिया से कट के देखते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
रक़्स करता है ब-अंदाज़-ए-जुनूँ दौड़ता है
दिल अगर ख़ुश हो तो चेहरे पे भी ख़ूँ दौड़ता है
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
ज़ब्त-ए-अलम से दिल है परेशाँ इस दिल को समझाए कौन
आँखों से आँसू गिरते हैं ख़ूँ इन को रुलवाए कौन
सय्यद मंज़र हसन दसनवी
ग़ज़ल
था असीरों में क़यामत का नुमायाँ होना
फ़स्ल-ए-गुल में वो मिरा दाख़िल-ए-ज़िंदाँ होना
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
ये 'आलम अब धुएँ का कार-ख़ाना लग रहा है
बराह-ए-रास्त साँसों पर निशाना लग रहा है
सय्यद मसरूर जौहर
ग़ज़ल
इश्क़ के टूटे हुए रिश्तों का मातम क्या करें
ज़िंदगी आ तुझ से फिर इक बार समझौता करें
अख़्तर सईद ख़ान
ग़ज़ल
सुन रहा हूँ बे-सदा नग़्मा जो मैं बा-चश्म-ए-तर
चुपके चुपके ज़िंदगी हँसती है मेरे हाल पर