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ग़ज़ल
ऐ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा हाँ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा
आज एक सितमगर को हँस हँस के रुलाना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
हूँ जाँ-ब-लब बुतान-ए-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहाँ में जीते हैं 'मोमिन' इसी तरह