aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "siyaah"
सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत हैसो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं
माँगे है फिर किसी को लब-ए-बाम पर हवसज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ पे परेशाँ किए हुए
याँ के सपीद ओ सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना हैरात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगाइसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
बनेगा मेहर-ए-क़यामत भी एक ख़ाल-ए-सियाहजो चेहरा 'दाग़'-ए-सियह-रू ने आश्कार किया
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गयाग़म की सियाह रात से घबरा के पी गया
हमेशा रंग-ए-ज़माना बदलता रहता हैसफ़ेद रंग हैं आख़िर सियाह मू करते
फ़र्द-ए-अमल सियाह किए जा रहा हूँ मैंरहमत को बे-पनाह किए जा रहा हूँ मैं
तवहहुम की सियह शब को किरन से चाक कर के आगही हर एक आँगन में नया सूरज उतारेमगर अफ़्सोस ये सच है वो शब थी और ये सुरज है ये सब को मान जाने में अभी कुछ दिन लगेंगे
गो सियह-बख़्त हैं हम लोग पे रौशन है ज़मीरख़ुद अँधेरे में हैं दुनिया को दिखाते हैं चराग़
सुनते हैं लैला के ख़ेमे को सियाहउस में मजनूँ का मगर मातम रहा
सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले
सियाह रंग चमकती हुई कनारी हैपहन लो अच्छी लगेंगी घटाएँ भेजी हैं
ऐ नर्गिस-ए-सियाह बता दे तिरे निसारकिस किस को है ये होश ये ग़फ़लत कहाँ कहाँ
जैसे आधी शब के बा'द चाँद नींद में चौंकेवो गुलाब की जुम्बिश उन सियाह बालों में
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने कायही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का
उस चश्म-ए-सियह की याद यकसरशाम-ए-ज़ुल्मात हो गई है
सियाह रात ने बेहाल कर दिया मुझ कोकि तूल दे नहीं पाया किसी कहानी को
नफ़स-ए-क़ैस कि है चश्म-ओ-चराग़-ए-सहरागर नहीं शम-ए-सियह-ख़ाना-ए-लैली न सही
रह-ए-ख़िज़ाँ में तलाश-ए-बहार करते रहेशब-ए-सियह से तलब हुस्न-ए-यार करते रहे
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