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ग़ज़ल
क़िस्मत जागे तो हम सोएँ क़िस्मत सोए तो हम जागें
दोनों ही को नींद आए जिस में कब ऐसी रातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
ग़ुंचे रोएँ कलियाँ रोएँ रो रो अपनी आँखें खोएँ
चैन से लम्बी तान के सोएँ इस फुलवारी के रखवाले
हबीब जालिब
ग़ज़ल
अपने-आप को समझाते हैं रात ढली अब तू भी सो जा
हम ही अकेले कैसे सोएँ दिल की धड़कन जाग रही है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
झोंपड़े वाले तो सोते ही नहीं सावन में
सोएँ तो ख़्वाब में सैलाब नज़र आते हैं
ओबैदुर्रहमान नियाज़ी
ग़ज़ल
साक़ी के साथ जागें तो सोएँ बुतों के साथ
लज़्ज़त वो जागने की है ये लुत्फ़ ख़्वाब का