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ग़ज़ल
याँ नफ़स करता था रौशन शम-ए-बज़्म-ए-बे-ख़ुदी
जल्वा-ए-गुल वाँ बिसात-ए-सोहबत-ए-अहबाब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जान-ए-मुज़्तर को न हो क्यूँ दिल-ए-बेताब से हज़
होता अहबाब को है सोहबत-ए-अहबाब से हज़
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
सरवत हुसैन
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जान से बढ़ कर हैं प्यारे दिल से बढ़ कर हैं अज़ीज़
महफ़िल-ए-अहबाब में हम किस को बेगाना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
क्यूँ दर-पय-ए-तलाश हैं अहबाब-ओ-अक़रबा
'परवीं' शहीद-ए-नाज़ को क़ातिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ये सस्ती लज़्ज़तों सस्ती सियासत के पुजारी हैं
हमें अहबाब का सौदा-ए-ख़ाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
मोहर-ए-दस्त-आवेज़-ए-ग़म है हर बशर का दाग़-ए-ग़म
दिल है महज़र सोहबत-ए-गुम-कर्दा-ए-अहबाब का
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
इन्ही के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़
ज़माना सुहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगा