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ग़ज़ल
क्या जानिए ये क्या खोएगा क्या जानिए ये क्या पाएगा
मंदिर का पुजारी जागता है मस्जिद का नमाज़ी सोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता!
रहा खटका न चोरी का दुआ देता हूँ रहज़न को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लहलहाते हुए ख़्वाबों से मिरी आँखों तक
रतजगे काश्त न कर ले तो वो कब सोता है