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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़न से निकाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सीना-ए-सोज़ाँ में 'साक़िब' घुट रहा है वो धुआँ
उफ़ करूँ तो आग दुनिया की हवा देने लगे
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
ज़ख़्म सिलवाने से मुझ पर चारा-जुई का है तान
ग़ैर समझा है कि लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न में नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तीरा-बख़्ती नहीं जाती दिल-ए-सोज़ाँ की 'फ़िराक़'
शम्अ के सर पे वही आज धुआँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
न निकला आँख से तेरी इक आँसू उस जराहत पर
किया सीने में जिस ने ख़ूँ-चकाँ मिज़्गान-ए-सोज़न को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मोती हूँ तो फिर सोज़न-ए-मिज़्गाँ से पिरो लो
आँसू हो तो दामन पे गिरा क्यूँ नहीं देते
मुर्तज़ा बरलास
ग़ज़ल
सूफ़ी यही है नूर-ए-सवाद-ए-हिजाब-ए-क़ल्ब
ज़ुल्मत हुई जो सीना-ए-सोज़ाँ के दूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
दयार-ए-इश्क़ में इक क़ल्ब-ए-सोज़ाँ छोड़ आए थे
जलाई थी जो हम ने शम्अ' रस्ते में जली कब तक
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
रफ़ू-ए-ज़ख्म से मतलब है लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न की
समझियो मत कि पास-ए-दर्द से दीवाना ग़ाफ़िल है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ ख़ार-ख़ार-ए-इल्तिमास-ए-बे-क़ारारी है
कि रिश्ता बाँधता है पैरहन अंगुश्त-ए-सोज़न पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में
हुआ है तार-ए-अश्क-ए-यास रिश्ता चश्म-ए-सोज़न में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़ख़्म को सीते हैं सब पर सोज़न-ए-अल्मास से
चाक सीने के सिलाना कोई हम से सीख जाए