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ग़ज़ल
सुब्ह-दम कैसे मिले महफ़िल में परवाने की ख़ाक
सुर्मा-ए-चश्म-ए-वफ़ा केशाँ है दीवाने की ख़ाक
पाशा रहमान
ग़ज़ल
किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप
कौन वो ख़ुश-बख़्त है जिस की मुलाक़ाती है धूप
अदीब ख़लवत
ग़ज़ल
सुब्ह-दम रोती जो तेरी बज़्म से जाती है शम्अ
साफ़ मेरे सोज़-ए-ग़म का रंग दिखलाती है शम्अ
इम्दाद इमाम असर
ग़ज़ल
सुब्ह-दम आया तो क्या हंगाम-ए-शाम आया तो क्या
तू मिरी नाकामियों के बा'द काम आया तो क्या
अमजद नजमी
ग़ज़ल
था जानिब-ए-दिल सुब्ह-दम वो ख़ुश-ख़िराम आया हुआ
आधा क़दम सू-ए-गुरेज़ और नीम-गाम आया हुआ
अहमद जावेद
ग़ज़ल
सुब्ह-दम उठ कर तिरा पहलू से जाना याद है
लोटना दिल का जिगर का फड़फड़ाना याद है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
उन की रुख़्सत इक क़यामत थी दम-ए-इज़हार-ए-सुब्ह
शाम तक बचता नज़र आता नहीं बीमार-ए-सुब्ह