आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "sub.h-o-shaam-o-shafaq"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "sub.h-o-shaam-o-shafaq"
ग़ज़ल
बड़ी दिलचस्पियों से सुब्ह-ए-शाम-ए-ज़िंदगी होगी
मैं देखूँगा उन्हें और सारी दुनिया देखती होगी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़िंदान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तू भी है मैं भी हूँ
इक गर्दिश-ए-मुदाम में तू भी है मैं भी हूँ
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
लोग सुब्ह ओ शाम की नैरंगियाँ देखा किए
और हम चुप-चाप माज़ी के निशाँ देखा किए
हसन नज्मी सिकन्दरपुरी
ग़ज़ल
टूटा जो वो तो शाम-ए-शफ़क़-ज़ाद ख़त्म थी
साँसों में फूल खिलने की मीआ'द ख़त्म थी
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
कहता है कौन हिज्र मुझे सुब्ह ओ शाम हो
पर वस्ल में भी लुत्फ़ नहीं जो मुदाम हो
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
ज़िंदगी हँसती है सुब्ह-ओ-शाम तेरे शहर में
आम है दौर-ए-मय-ए-गुल-फ़ाम तेरे शहर में