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ग़ज़ल
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
जैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
हम्माद नियाज़ी
ग़ज़ल
ख़ाली कुर्सी दो कप चाय सब्ज़ा ख़ुशबू बूँदा-बाँदी
सुब्ह-सवेरे मुझ से मिल कर तेरी बातें करते हैं
दानिश अज़ीज़
ग़ज़ल
सुब्ह सवेरे ख़्वाब में देखा मुझ से कोई ये कहता था
इक तू ही बर्बाद रहे और जग सारा आबाद रहे
नासिर अमरोहवी
ग़ज़ल
सुब्ह सवेरे माँ ने पुकारा भागी भागी घर पहुँची
इक जूता था पैर में दूजा ख़्वाब में रख कर भूल गई
समीना साक़िब
ग़ज़ल
रोज़-ए-अज़ल से बिछड़े हुए हो आख़िर कब तुम आओगे
सुब्ह सवेरे जाने वाले लौट आते हैं रात हुए
वासिल उस्मानी
ग़ज़ल
मीठी धुन में गा के हमें बुलाता है इस मंदिर में
कौन भगत ये सुब्ह-सवेरे आता है इस मंदिर में