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ग़ज़ल
ख़ुशियाँ आईं अच्छा आईं मुझ को क्या एहसास नहीं
सुध-बुध सारी भूल गया हूँ दुख के गीत सुनाने में
मीराजी
ग़ज़ल
मोहब्बत जुर्म ऐसा है कि मुजरिम है खड़ा बे-सुध
किया क्या है गुनह क्या है सज़ा क्या है ख़ता क्या है
माहम शाह
ग़ज़ल
पुर-ग़ुबारी-ए-जहाँ से नहीं सुध 'मीर' हमें
गर्द इतनी है कि मिट्टी में रुले जाते हैं
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जगत सबहहा अमत बरहमुख अटक कहसवा ममन करन खा
दिवानी केनी तुमन सुरीजन न सुध की गर पर न बुध की झाला
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हमें न सुध है न हम दस्तकें ही सुनते हैं
तू अपने दिल से हमें क्या भला निकालेगी
धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तू आया तो द्वार भिड़े थे दीप बुझा था आँगन का
सुध बिसराने वाले मुझ को होश कहाँ था तन मन का