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ग़ज़ल
काम क्रोध से ना-वाक़िफ़ है सुध-बुध से बेगाना भी
वर्ना 'शाहिद-शैदाई’ को कौन कहे दीवाना भी
शाहिद शैदाई
ग़ज़ल
ख़ुशियाँ आईं अच्छा आईं मुझ को क्या एहसास नहीं
सुध-बुध सारी भूल गया हूँ दुख के गीत सुनाने में
मीराजी
ग़ज़ल
हम तो सुध-बुध खो बैठे थे हस्ती के वीराने में
जाने कब ज़ुल्फ़ें लहराईं जाने कब सँवलाई धूप
कैफ़ अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
आओ चलें उन की महफ़िल में और अपनी सुध-बुध खो दें
आज भी यारो उन आँखों में कोई फ़साना होगा ही
कुमार पाशी
ग़ज़ल
प्यार में उन के सुध-बुध खो कर इस तरह बेहाल हुए
लोग हमें आशिक़ आवारा कहते हैं तो कहने दो
सलीम रज़ा रीवा
ग़ज़ल
प्रीत-नगर की रीत नहीं है ऐसा ओछा-पन बाबा
इतनी सुध-बुध किस को यहाँ जो सोचे तन-मन-धन बाबा
इलियास इश्क़ी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
जगत सबहहा अमत बरहमुख अटक कहसवा ममन करन खा
दिवानी केनी तुमन सुरीजन न सुध की गर पर न बुध की झाला
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
भूले हैं दो-जहाँ को सुद-बुद नहीं किसी की
जो जो हैं इस जहाँ में तेरे ख़याल वाले