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ग़ज़ल
कब मिलता है सुख-चैन हमें कब ग़म से रिहाई होती है
हर वक़्त कलेजा फुंकता है लब पर जान आई होती है
अमीर चंद बहार
ग़ज़ल
पल ही में गुज़र जाती है सुख-चैन की रातें
दुख-दर्द के दिन पल में गुज़र क्यों नहीं जाते
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
धरती पर सुख चैन की ख़ातिर मन के मैल को साफ़ करो
गंगा जल में जिस्म को अपने नहलाने से क्या होगा
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
जिन कूचों में सुख-चैन गया जिन गलियों में बदनाम हुए
दीवाना दिल उन गलियों में रह रह कर ठोकर खाए है
रिफ़अत सरोश
ग़ज़ल
'अंजुम' प्यार जिसे कहते हैं उस के ढंग न्यारे हैं
चुप में है सुख चैन न कोई राहत क़ील-ओ-क़ाल में है