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ग़ज़ल
जो हैं मस्त-ए-अलस्त उन को ख़ुमार-ओ-सुक्र का डर क्या
निगाह-ए-तिश्ना-काम-ए-इश्क़ ही दस्त-ए-मुग़ाँ तक है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
बे-ख़ुदी गुम-गश्तगी सुक्र-ओ-तहय्युर महवियत
कुछ मक़ामात और भी पड़ते हैं मयख़ाने के बा'द
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
तिरी जज़्ब में है रुबूदगी तेरे सुक्र में है ग़ुनूदगी
न ख़बर शुहूद-ओ-वजूद की न तरंग-ए-मौज-ए-सराब है
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
याद के फेर में आ कर दिल पर ऐसी कारी चोट लगी
दुख में सुख है सुख में दुख है भेद ये न्यारा भूल गया
मीराजी
ग़ज़ल
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं
सद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
ये सजा-सजाया घर साथी मिरी ज़ात नहीं मिरा हाल नहीं
ऐ काश कभी तुम जान सको जो इस सुख ने आज़ार दिया
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
प्यारों से मिल जाएँ प्यारे अनहोनी कब होनी होगी
काँटे फूल बनेंगे कैसे कब सुख सेज बिछौना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
बाद-ए-ख़िज़ाँ का शुक्र करो 'फ़ैज़' जिस के हाथ
नामे किसी बहार-ए-शिमाइल से आए हैं