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ग़ज़ल
कोई भी क़ैद-ए-मुसलसल मिरी क़िस्मत में न थी
मेरे सय्याद का दिल टूट गया है मुझ से
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
अजब शय है 'फ़ज़ा' ज़ेहन ओ नज़र की ये असीरी भी
मुसलसल देखते रहना बराबर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
नहीं तर्जुमान-ए-बयाँ कोई जो है पर्दा-दार-ए-सुकूत है
हैं ये दाग़ दाग़ इबारतें बड़े एहतिमाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
मदद ऐ जज़्बा-ए-अश्क-ए-मुसलसल साँस लेने दे
सुखा लेने दे भीगी आस्तीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-गर्दिश-ओ-आफ़ात-ए-मुसलसल मत पूछ
जब मरज़ हद से बढ़ा रह गया दरमाँ हो कर
महमूद अबदुल क़दीर
ग़ज़ल
कुछ तो पय-ए-शिकस्त-ए-सुकूत-ए-शब-ए-अलम
गिर्या सही फ़ुग़ाँ सही कुछ दम-ब-दम तो हो