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ग़ज़ल
वो जिन का लफ़्ज़ लफ़्ज़ भी आँखों का रिज़्क़ था
सुलझी हुई किताब थे वो लोग मर गए
अशफ़ाक़ अहमद साइम
ग़ज़ल
हम जो मगन हैं ध्यान में अपने उस को भी धोका जानो
किस से सुलझी साँस के ताने-बाने की उलझन बाबा
इलियास इश्क़ी
ग़ज़ल
तार-ए-गरेबाँ सीने वाले चाक-ब-दामन आए हैं
या'नी कुछ तक़दीर न सुलझी उलझी थी दीवाने से
कैफ़ी चिरय्याकोटी
ग़ज़ल
जब भी आया है तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का ख़याल
मेरी सुलझी हुई फ़िक्रों को सँवरने न दिया