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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ये सिस्का भी ये रोया भी मुझे इस दिल पे हैरत है
ये टूटा भी ये बिखरा भी मुझे इस दिल पे हैरत है
सुमन शाह
ग़ज़ल
उन के बग़ैर दिल का ये आलम है अब 'सुमन'
बुझती हुई हूँ शम्अ' मैं जैसे मज़ार की
सुमन ढींगरा दुग्गल
ग़ज़ल
अब थकन तक जा चुकी हैं हसरतें दीदार की
ख़ुश्क आँखों में 'सुमन' दरिया समाना चाहिए
चित्रा भारद्वाज सुमन
ग़ज़ल
हम 'सुमन' दर्द के साए में तबस्सुम लब पर
रखना होता तो है दुश्वार मगर रखते हैं
सुमन ढींगरा दुग्गल
ग़ज़ल
आरज़ू में तिरी बल खाए चली जाऊँ 'सुमन'
जब किसी बेल को मैं पेड़ से लिपटा देखूँ
चित्रा भारद्वाज सुमन
ग़ज़ल
तमाम उम्र ही वहम-ओ-गुमान में गुज़री
मिरी तो प्यास सराबों के ध्यान में गुज़री
चित्रा भारद्वाज सुमन
ग़ज़ल
मुंतज़िर मैं हूँ 'सुमन' कोई कहीं से आ कर
दिल अभी तक जो मकाँ है वो उसे घर कर दे