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ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
इस क़दर ख़ौफ़ है अब शहर की गलियों में कि लोग
चाप सुनते हैं तो लग जाते हैं दीवार के साथ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
साफ़-गोई में तो सुनते हैं 'फ़ना' है मशहूर
देखना ये है तिरे मुँह पे वो कहता क्या है