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ग़ज़ल
उम्र जल्वों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
तुम हो या छेड़ती है याद-ए-सहर कोई तो है
खटखटाता है जो ये ख़्वाब का दर कोई तो है