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ग़ज़ल
भरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा
जिसे तेरी आरज़ू नहीं तू उसे मिला तो बुरा लगेगा
ज़ुबैर अली ताबिश
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कहूँ तो क्या मैं कहूँ प्यारी प्यारी आँखों को
सुबू कहूँ कि सुराही तुम्हारी आँखों को
साग़र ख़य्यामी
ग़ज़ल
'आरिश' सुराही-दार सी गर्दन के सेहर में
ज़मज़म सी गुफ़्तुगू को भी रम गिन रहा हूँ मैं
सरफ़राज़ आरिश
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
शैख़ आख़िर ये सुराही है कोई ख़ुम तो नहीं
और भी बैठे हैं महफ़िल में हमीं तुम तो नहीं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
सुराही गर्दन वो आबगीना फिर आगे सीना भी जूँ नगीना
भरा है जिस में तमाम कीना कि जूँ नगीना दमक रहा है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अगर कैफ़-ए-सुख़न मेरा निहाल-ए-ताक को पहुँचे
सुराही शाख़ बन जावे शराब अंगूर से टपके