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ग़ज़ल
गर दिल को बस में पाएँ तो नासेह तिरी सुनें
अपनी तो मर्ग-ओ-ज़ीस्त है उस बेवफ़ा के हाथ
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
अगर हो इश्क़ से मोहकम तो सूर-ए-इस्राफ़ील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दबा रक्खा है इस को ज़ख़्मा-वर की तेज़-दस्ती ने
बहुत नीचे सुरों में है अभी यूरोप का वावैला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
वो फ़रिश्ते आप तलाश करिए कहानियों की किताब में
जो बुरा कहें न बुरा सुनें कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
सुनने वालों की है तौफ़ीक़ सुनें या न सुनें
बात कहने की जो है हम तो कहा करते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
सुरीं नाज़ुक कमर पतली ख़त-ए-गुलज़ार रूमा दिल
कहूँ क्या आगे अब इस के मक़ाम-ए-पर्दादारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दाद-ख़्वाहों से वो कहते हैं कि हम भी तो सुनें
दोगे तुम हश्र में सब मिल के दुहाई क्यूँकर
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
सात सुरों की लहरों पे हलकोरे लेते फूल से हैं
इक मदहोश फ़ज़ा सुनती है इक चिड़िया के गाने को