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ग़ज़ल
दबा रक्खा है इस को ज़ख़्मा-वर की तेज़-दस्ती ने
बहुत नीचे सुरों में है अभी यूरोप का वावैला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सात सुरों की लहरों पे हलकोरे लेते फूल से हैं
इक मदहोश फ़ज़ा सुनती है इक चिड़िया के गाने को
सऊद उस्मानी
ग़ज़ल
यहाँ देखा है मैं ने ख़ुद-सरों को ख़ाक में मिलते
तिरा सर झुक गया लेकिन मिरा इंकार ज़िंदा है
इरुम ज़ेहरा
ग़ज़ल
धीमे सुरों में दर्द का पंछी अपनी धुन में गाता है
प्यासी रूहें प्यास का जंगल और मैं लिखता जाता हूँ
जावेद सबा
ग़ज़ल
मातम है मिरी आवाज़ शिकस्त-ए-साज़-ए-दिल-ए-सद-पारा का
'साग़र' मेरा नग़्मा भी दीपक के सुरों में रोना है
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
ये देखना है कि दम है कितना ग़नीम लश्कर के बाज़ुओं में
सफ़ों को अपनी सजाए रखना सुरों को अपने उठाए रहना
अतहर शकील
ग़ज़ल
गुथी इन सुरों ही में आ गई मुझे इक उरूस के बास से
अभी 'इंशा' अपना हो बस अगर तो लिपट ही जाऊँ बहाग से