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ग़ज़ल
अपनी नज़रों में नशात-ए-जल्वा-ए-ख़ूबाँ लिए
ख़ल्वती-ए-ख़ास सू-ए-बज़्म-ए-आम आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मैं शम्अ-ए-बज़्म-ए-आलम-ए-इम्काँ किया गया
इंसानियत को देख के इंसाँ किया गया
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं
सोचो तो सिर्फ़ कुश्ता-ए-दौर-ए-जहाँ हूँ मैं
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
निगार-ख़ाना-ए-बज़्म-ए-जहाँ की बात करो
शराब-ओ-सब्ज़ा-ओ-आब-ए-रवाँ की बात करो
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
नक़ाब-ए-बज़्म-ए-तसव्वुर उठाई जाती है
शिकस्त-ख़ुर्दों की हिम्मत बढ़ाई जाती है
लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़
ग़ज़ल
ग़ुरूर-ए-बज़्म-ए-तरब को नमी ने मार दिया
हमारे ज़ब्त को तेरी कमी ने मार दिया
मुज़म्मिल अब्बास शजर
ग़ज़ल
था शरीक-ए-बज़्म-ए-ग़म मैं हम-नवाँ कोई नहीं
दर्द-ए-दिल को हर्फ़ करने का बयाँ कोई नहीं
दिव्या जैन
ग़ज़ल
और कोई बात सर-ए-बज़्म-ए-सुख़न कब निकली
बस तिरी बात ही निकली है यहाँ जब निकली
मेहदी बाक़र ख़ान मेराज
ग़ज़ल
सर-ए-बज़्म-ए-तलब रक़्स-ए-शरर होने से डरती हूँ
कि मैं ख़ुद पर मोहब्बत की नज़र होने से डरती हूँ
रेहाना क़मर
ग़ज़ल
वासिल उस्मानी
ग़ज़ल
हो के दिल-बर्दाश्ता उट्ठे हैं बज़्म-ए-आम से
अब चले आएँगे ऐ क़ासिद वो मेरे नाम से