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ग़ज़ल
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
अगर हो इश्क़ से मोहकम तो सूर-ए-इस्राफ़ील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ग़ैब-समय के ज्ञान में पागल कितनी तान लगाएगा
जितने सुर हैं साज़ से बाहर उस से ज़ियादा साज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
गायकी में जितने सुर थे खा गई शोरीदगी
शाइरी में जितने भी थे इस्तिआ'रे मर गए
सैयद जॉन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
सुर कहाँ के साज़ कैसा कैसी बज़्म-ए-सामईन
जोश-ए-दिल काफ़ी है 'अकबर' तान उड़ाने के लिए
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
क़ब्र में सोए हैं महशर का नहीं खटका 'रसा'
चौंकने वाले हैं कब हम सूर की आवाज़ से
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
मिरी आँखों से ख़ूनीं अश्क यूँ गिरते हैं पलकों पर
लहू सूली के ऊपर जूँ सर-ए-मंसूर से टपके