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ग़ज़ल
शो'ला-ए-ग़म को रग-ए-जाँ में किया जज़्ब तो फिर
हर नज़र सूरत-ए-ख़ुर्शीद नज़र आई है
सलाहुद्दीन नदीम
ग़ज़ल
सर्द अल्फ़ाज़ को बख़्शी है हरारत किस ने
रश्क-ए-'ख़ुर्शीद' है वो उस का सुख़न आग है आग
खुर्शीद अकबर
ग़ज़ल
सदियों से धड़कती हुई इक चाप थी दिल में
एक एक घड़ी सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा थी
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
रग-ओ-पै में न जाने कौन आ कर बस गया है
महकती हैं मिरी तन्हाइयाँ संदल की सूरत
ख़ुर्शीद अम्बर प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
'ख़ुर्शीद' जिस से ज़ुल्मत-ए-शब फ़ैज़याब हो
आँखों से दूर है वो ज़िया-ए-सहर अभी
क़ाज़ी सय्यद ख़ुर्शीदुद्दीन ख़ुर्शीद
ग़ज़ल
हम रहे दहर में आज़ुर्दा-ए-साहिल 'ख़ुर्शीद'
नाख़ुदा से कभी उलझे कभी तूफ़ानों से