aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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परिणाम "taKHt-e-sabaa"
एक एक क़तरा उस का शो'ला-फ़िशाँ सा हैमौज-ए-सबा पे रेग-ए-रवाँ का गुमाँ सा है
इस शहर में तो कोई सुलैमान भी नहींमैं क्या बताऊँ तख़्त-ए-सबा कौन ले गया
वो शम्स है कि सितारा वो चाँद है कि सहरवो शख़्स जान-ए-'सबा' है सराब है क्या है
ये तख़्त-ए-सबा ख़िलअत-ए-गुल कर्सी-ए-महताबसब तेरे लिए अंजुमन-आराई हुई है
अगरचे हद्द-ए-नज़र तक धुआँ धुआँ है फ़ज़ाइसी दयार में मुमकिन है फिर 'सबा' मिल जाए
मुझ को इस बर्क़ से बस इतना ही शिकवा है 'सबा'आशियाँ जल गया क्यूँ शाख़-ए-नशेमन न जली
जब मुक़द्दर है शब-ओ-रोज़ की बे-कैफ़ी 'सबा'ख़्वाब की तरह हर इक याद भुला दी जाए
आबला-पा है तो क्या है तू वो सरगर्म-ए-सफ़रक़ाफ़िले वालो 'सबा' को तो पुकारा जाए
ये क़र्ज़ जाँ का 'सबा' मुझ से कब अदा होगाहुनूज़ सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब हिसाब में है
सब कुछ अता हुआ तिरी रहमत से इस लिएदस्त-ए-तलब को और कुशादा नहीं किया
'सबा' हज़ार अता की हैं ने'मतें उस नेमगर जहाँ में असीर-ए-मलाल रक्खा है
मैं तेरे शहर में तुझ से भी सर-कशीदा हूँतू मुझ से मिलने सर-ए-राह बे-सबब आई
ताइर की तरह मैं हूँ 'सबा' अब शिकस्ता परपरवाज़ की हवस है मगर बाल-ओ-पर नहीं
'सबा' ये कौन सी मंज़िल है दश्त-ए-इम्काँ मेंन आश्ना से ग़रज़ है न अजनबी से हमें
ऐ 'सबा' कीमिया-ए-ग़म के लिएज़िंदगी ख़ाक में मिला दी है
है काफ़िर-ए-अदब मिरे मशरब में ऐ 'सबा'शाइ'र जो एहतिराम रिवायत न कर सके
ऐ 'सबा' क्यूँ हो दर-ए-ग़ैर पे तौहीन-तलबअपने ही दर को हमेशा दर-ए-दौलत समझो
रात अँधेरी और मैं तन्हा मुसाफ़िर ऐ 'सबा'किस क़दर मुश्किल हुई है ज़िंदगी मेरे लिए
यूँ तो हिज्र की रातें रोज़ ही गुज़रती हैंआज ऐ 'सबा' लेकिन सुब्ह से उदासी है
है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआबोरिया तख़्त-ए-सुलैमाँ है ये मा'लूम हुआ
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