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ग़ज़ल
सुर्ख़ रहती हैं मिरी आँखें लहू रोने से शैख़
मय अगर साबित हो मुझ पर वाजिब अल-ताज़ीर हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
पाने का उसे ख़्वाब जो देखा है हमेशा
वो ख़्वाब ही बस ख़्वाब की ताबीर में लिख दे
फ़रहत नदीम हुमायूँ
ग़ज़ल
अर्श तक जो बे-ख़ता जाता है ये वो तीर है
ग़ैर समझा है कि मेरी आह बे-तासीर है