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ग़ज़ल
मुंजमिद आख़िर है क्यूँ ता-हद्द-ए-मंज़र फैल जा
चार जानिब ऐ मिरे ख़ूँ के समुंदर फैल जा
राशिद अनवर राशिद
ग़ज़ल
ता-हद्द-ए-नज़र कोई मकाँ है ना मकीं है
दिल वक़्त के मक़्तूल फ़सानों की ज़मीं है
ख़ुर्शीद अहमद जामी
ग़ज़ल
दूर ता-हद्द-ए-नज़र आब-ए-शजर कुछ भी नहीं
जाने क्या क्या था निगाहों में मगर कुछ भी नहीं