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ग़ज़ल
दिल-ए-कम-ज़र्फ़ ने हम को कहीं का भी नहीं छोड़ा
रहे थे चार दिन हज़रत हमारे राज़-दारों में
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
तंग-दिल कोई अगर फ़य्याज़ हो जाए तो डर
ऐ 'ज़फ़र' कम-ज़र्फ़ की दरिया-दिली से ख़ौफ़ खा
ज़फ़र मुरादाबादी
ग़ज़ल
ये ज़र्फ़-ए-कम-निगही और ये ज़ो'म-ए-दीदा-वरी
ज़माना आज तुम्हें बे-नक़ाब माँगे है