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ग़ज़ल
ताब असलम
ग़ज़ल
ताज़ा मज़मूँ 'सेहर' अपनी तब्-ए-मौज़ूँ से निकाल
हो न तू तर्ज़-ए-सुख़न में आश्ना तक़लीद का
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
मयकश अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़बाँ से कुछ न कहना बावजूद-ए-ताब-ए-गोयाई
खुली आँखों से बस मंज़र ब मंज़र सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
हटे ग़ुबार जो लौ से तो मेरी जोत जगे
जलूँ मैं फिर से नई आब-ओ-ताब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
रश्क-ए-महशर कोई क़ामत तो निगाहों में जचे
दिल में बाक़ी है अभी ताब-ओ-तवाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
डूब जाता है जो सन्नाटे में सारा आलम
दिल की बेचैनियाँ तब दाद-ए-वफ़ा देती हैं