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ग़ज़ल
औरों पे न जाने क्या गुज़री इस तेग़-ओ-तबर के मौसम में
हम सर तो बचा लाए लेकिन दस्तार सर-ए-बाज़ार गिरी
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
तू मेरा हौसला तो देख फिर हूँ उसी के रू-ब-रू
तीर-ओ-तबर हैं उस के पास और मैं ढाल के बग़ैर