aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "tabarruk-e-hayaat"
ख़ाका-ए-तसवीर था मैं ख़ाली-अज़-रंग-ए-हयातयूँ सजाया आप ने मुझ को कि 'क़ैसर' कर दिया
सुब्ह-ए-नशात-ए-दिल है न शाम-ए-ग़म-ए-'हयात'ऐ इज़्तिराब-ए-शौक़ कहाँ ले चला मुझे
ऐ 'हयात' आईना हों क्या जल्वेसब यहाँ साहब-नज़र तो नहीं
सितम-ज़रीफ़ी-ए-हालात का करिश्मा हैभटकने वाले मुझे रास्ते बताते हैं
मैं कैसे करता मुकम्मल नुक़ूश हस्ती केरुख़-ए-‘हयात’ बदलता रहा उफ़क़ की तरह
ऐ 'हयात' अपने ही एहसास ने बढ़ने न दियाकितना आसान था गिरतों को कुचल कर जाना
अपने साए से हम ख़ुद ऐ हयात डरते हैंमस्लहत की दुनिया में कितनी बद-गुमानी है
जुस्तुजू नए-पन की इर्तिक़ा का महवर हैहम भी इस मक़ूले के ऐ 'हयात' क़ाइल हैं
मैं जानता हूँ तिरा 'इश्क़ भी ऐ जान-ए-'हयात'ज़रूर छोड़ के जाएगा इक निशानी भी
हाँ ऐ 'हयात' हम ने ज़माने के दुख सहेफिर भी हमें किसी से शिकायत नहीं रही
मय-ख़ाना-ए-हयात का अंजाम दे गयावो मुझ को एक टूटा हुआ जाम दे गया
दम-ए-आख़िर भी वो न आए 'हयात'ये भी मुझ से गिला नहीं होता
'हयात' का दम-ए-आख़िर नहीं है जान-ए-हयातये फ़ैसले की घड़ी है ज़रा ठहर जाओ
रह-ए-हयात में काँटे बिछें कि फूल खिलेंये शर्त है तिरी जानिब वो रास्ता जाए
ऐ 'हयात' उन की निगाहों के तबस्सुम पे निसारज़िंदगी और न गुज़रेगी अब आराम के साथ
अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'बस किताबों में लिखा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
शहर-ए-मुराद मिल भी गया अब तो क्या 'हयात'मायूसियों का दिल से कभी डर न जाएगा
'हयात' उस सम्त से आती हवा भीपयाम-ए-ज़िंदगी लाती रही है
हालात का ये रुख़ भी 'हयात' आप समझ लेंक्यूँ ज़ुल्म ब-अंदाज़-ए-करम टूट रहे हैं
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