आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "tabassum-e-nigh-e-raaz-daar"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "tabassum-e-nigh-e-raaz-daar"
ग़ज़ल
वो समझता है उसे जो राज़-दार-ए-नग़्मा है
आह कहते हैं जिसे सिर्फ़ इक शरार-ए-नग़्मा है
नाज़िश प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
मोहब्बत ख़ुद ही अपनी पर्दा-दार-ए-राज़ होती है
जो दिल पर चोट लगती है वो बे-आवाज़ होती है
विशनू कुमार शाैक़
ग़ज़ल
डरते न थे दराज़ी-ए-शाम-ए-फ़िराक़ से
हम राज़-दार-ए-सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार थे
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
जो राह-ए-हक़ में मरने के लिए तय्यार हो जाए
नज़र में उस की बाज़ीचा फ़राज़-ए-दार हो जाए
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
सदफ़ की तरह दिल को राज़-दार-ए-मौज-ए-तूफ़ाँ कर
गुहर की तरह मुझ को ग़र्क़-ए-बहर-ए-आबरू कर दे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
आह ओ फ़ुग़ाँ न कर जो खुले 'ज़ौक़' दिल का हाल
हर नाला इक कलीद-ए-दर-ए-गंज-ए-राज़ है