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ग़ज़ल
कोई 'ग़ालिब' जानता है कोई 'ख़ाक़ानी' मुझे
हाए दुनिया कैसे पहचानी जो पहचानी मुझे
ताहिर सऊद किरतपूरी
ग़ज़ल
सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल
तू ने अपने तरकश में जो रक्खा है वो तीर निकाल
शाहिद कमाल
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
आज आया है मेरे आगे एक बड़ा गम्भीर सवाल
उस की हर तहरीर तलब है उस की हर तक़रीर सवाल