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ग़ज़ल
मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुतमइन रहा हूँ
तिरा जिस्म बे-तग़य्युर मिरा प्यार जावेदाँ है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ख़िलाफ़-ए-मस्लहत मैं भी समझता हूँ मगर नासेह
वो आते हैं तो चेहरे पर तग़य्युर आ ही जाता है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं
ज़ख़्म भरने से पहले किसी ने मिरी पट्टियाँ खोल दीं
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मोहर-ए-तग़य्युर इस धज से आफ़ाक़ के माथे पर चमका
सदियों के उफ़्तादा ज़र्रे हम-दोश-ए-अफ़्लाक हुए
ज़हीर काश्मीरी
ग़ज़ल
तलव्वुन चश्म-ए-साक़ी में तग़य्युर वज़्-रिंदी में
हमारे मय-कदे में रोज़ पैमाने बदलते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुतमइन रहा हूँ
तिरा जिस्म बे-तग़य्युर मिरा प्यार जावेदाँ है