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ग़ज़ल
तबस्सुम जब किसी का रूह में तहलील होता है
तो दिल की बाँसुरी से नित नए नग़्मे निकलते हैं
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
रौशनी में लफ़्ज़ के तहलील हो जाने से क़ब्ल
इक ख़ला पड़ता है जिस में घूमता रहता हूँ मैं