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ग़ज़ल
झूमती है शाख़-ए-गुल खिलते हैं ग़ुंचे दम-ब-दम
बा-असर गुलशन में तहरीक-ए-सबा हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
नोक-ए-नश्तर हो तो हाँ क़ाबिल-ए-तहरीक है दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
सदा-ए-कलेमतुल-हक़ में तिरी तहरीक शामिल है
अनल-हक़ कहता है हर क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर मेरा
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
तहरीक-ए-ज़ुल्फ़ से तिरी बाद-ए-सुमूम ने
कहते हैं दश्त-ओ-दर में दिए बाट बाट साँप
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कोई ताज़ीर कि मैं ने भी मोहब्बत की है
कुछ तो हिस्सा है ये तहरीक चलाने में मिरा
काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
ग़ज़ल
टूटते बनते अनासिर में हो तहरीक-ए-कमाल
या मुझे ख़ाक बना या मुझे जल-थल कर दे