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ग़ज़ल
ये ज़ीस्त जू-ए-शीर है ऐ 'खुसरव'-ए-सानी
लाज़िम है तुम्हें तेशा-ए-फ़र्हाद भी रक्खो
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
इश्क़-ए-सादिक़ को गवारा क्यूँ हुआ क्यूँ-कर हुआ
हीला-ए-परवेज़ ग़ालिब तेशा-ए-फ़र्हाद पर
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
दिल-ख़राशी से है क्या कोह-कनी को निस्बत
नाख़ुन-ए-ग़म से फ़ुज़ूँ तेशा-ए-फ़र्हाद नहीं
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
सब्र लाज़िम है तुझे कोह-ए-मोहब्बत पे ज़रूर
जज़्ब-ए-दिल को तू कहीं तेशा-ए-फ़र्हाद न कर